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हज़रत मख़दूम, ख़्वाजा क़ाज़ी क़िदवतुद्दीन अलमारूफ़ क़ाज़ी क़िदवा की औलाद में हैं। क़ाज़ी क़िदवा, ख़्वाजा उसमान
शैख़-उल-मशाइख़, बादशाह-ए-’आलम-ए-हक़ीक़त , कान-ए-मोहब्बत-ओ-वफ़ा हज़रत ख़्वाजा नसीरुल-मिल्लत वद्दीन महमूद अवधी रहमतुल्लाह अ’लैह।तकमिला-ए-सियर-उल-औलिया में है कि ’इल्म-ओ-’अक़्ल-ओ-’इश्क़ में आपका ख़ास मक़ाम था। मकारिम-ए-अख़्लाक़ में आपका काई सानी न था।
शहर-ए-अवध या’नी अयोध्या अहल-ए-तसव्वुफ़ का अ’ज़ीम मरकज़ रहा है। इसकी आग़ोश में अपने वक़्त के अ’ज़ीम-तरीन
ख़्वाजा सैयद नसीरुद्दीन महमूद रौशन चिराग़ देहलवी सिलसिला-ए-चिश्तिया के रौशन चराग़ हैं। आप की पैदाइश अयोध्या
आप ख़्वाजा नसीरुद्दीन चराग़-ए-देहलवी के भांजा और आपके ही मुरीद और ख़लीफ़ा भी थे।आप हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा के भाई थे।आप अक्सर ख़्वाजा नसीरुद्दीन चराग़ देहलवी की ख़िदमत-ए-अक़्दस में हाज़िर रहते थे, और हज़रत मख़दूम साहिब भी आपसे बड़ी शफ़क़त-ओ-इ’नायत से पेश आते थे।आप वली-ए-ज़माना थे।
हिन्दुस्तान यूँ तो हमेशा सूफ़ियों और दरवेशों का अ’ज़ीम मरकज़ रहा है।इन हज़रात-ए-बा-सफ़ा ने यहाँ रहने वालों को हमेशा अपने फ़ुयूज़-ओ-बरकात से नवाज़ा है और ता-क़यामत नवाज़ते रहेंगें।इन्हीं बा-सफ़ा सूफ़ियों में हज़रत बीबी क़ताना उ’र्फ़ बड़ी बुआ साहिबा रहमतुल्लाहि अ’लैहा का नाम सर-ए-फ़िहरिस्त आता है।
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