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शे'र
चाँद सा मुखड़ा उस ने दिखा कर फिर नैनाँ के बाण चला करसँवरिया ने बीच-बजरिया लूट लियो इस निर्धन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
सताता है मुझे सय्याद ज़ालिम इस लिए शायदकि रौनक़ उस के गुलशन की मिरे शग़्ल-ए-फ़ुग़ाँ तक है
वली वारसी
शे'र
तिरे कूचे में क्यूँ बैठे फ़क़त इस वास्ते बैठेकि जब उट्ठेंगे इस दुनिया से जन्नत ले के उट्ठेंगे