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शे'र
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
'मुज़्तर' मुझे चाहत में सज्दों की ज़रूरत क्याख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ ने क़िस्मत मिरी चमका दी
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
न पूछो बे-नियाज़ी आह तर्ज़-ए-इम्तिहाँ देखोमिलाई ख़ाक में हँस हँस के मेरी आबरू बरसों
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
ख़ुदा को याद कर क्यों मुल्तजी है कीमिया-गर सेकि सोना ख़ाक से होता है पैदा ला’ल पत्थर से
बह्र लखनवी
शे'र
ख़ुदा को याद कर क्यों मुल्तजी है कीमिया-गर सेकि सोना ख़ाक से होता है पैदा ला’ल पत्थर से