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शे'र
कि ख़िरद की फ़ित्नागरी वही लुटे होश छा गई बे-ख़ुदीवो निगाह-ए-मस्त जहाँ उठी मिरा जाम-ए-ज़िंदगी भर गया
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
ख़िरद है मजबूर अक़्ल हैराँ पता कहीं होश का नहीं हैअभी से आलम है बे-ख़ुदी का अभी तो पर्दा उठा नहीं है