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शे'र
चाँद सा मुखड़ा उस ने दिखा कर फिर नैनाँ के बाण चला कर
सँवरिया ने बीच-बजरिया लूट लियो इस निर्धन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
रहज़न-ए-ईमान तू जल्वा दिखा जाए अगर
बुत पुजें मंदिर में मस्जिद में ख़ुदा की याद हो
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
वो तूर वाली तिरी तजल्ली ग़ज़ब की गर्मी दिखा रही है
वहाँ तो पत्थर जला दिए थे यहाँ कलेजा जला रही है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
कहूँ क्या कि गुलशन-ए-दहर में वो अजब करिश्मे दिखा गए
कहीं आशिक़ों को मिटा गए कहीं लन-तरानी सुना गए
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
चाँद सा मुखड़ा उस ने दिखा कर फिर नैनाँ के बाँड़ चला कर
साँवरिया ने बीच-बजरिया लूट लियो इस निर्धन को
अब्दुल हादी काविश
शे'र
आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गई
आ के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई
क़ैसर शाह वारसी
शे'र
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दिया
वहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दिया
वहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया