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शे'र
मर ही गए जफ़ाओं से क़ातिल तड़प-तड़पमैं क्या कि और कितने ही बिस्मिल तड़प-तड़प
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत मेंकि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
उस बुलबुल-ए-असीर की हसरत पे दाग़ हूँमर ही गई क़फ़स में सुनी जब सदा-ए-गुल