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गर कहीं उस को जल्वा-गर देखान गया हम से आँख भर देखा
वाबस्ता है हमीं से गर जब्र है ओ गर क़द्रमजबूर हैं तो हम हैं मुख़्तार हैं तो हम हैं
गर तू अफ़लातून-ओ-लुक़मानी ब-इ'ल्ममन ब-यक दीदार नादानत कुनम
गर इजाज़त हो तो परवाना की तरहसदक़ा होने को तुम्हारे आइए
तुझ बिन गुलशन में गर गए हमजूँ शबनम चश्म-तर गए हम
गर रही यूँही गुल-फ़िशानी-ए-अश्कजा-ब-जा रश्क-ए-इरम कीजिएगा
बराबर हैं गर पास हो गुल-बदनचमन हो कि जंगल चे गुलज़ार हो
दौलत-ए-इ’श्क़-ए-ख़ुदा हासिल हो गरकुछ नहीं अच्छा दिगर इस कार से
आ’शिक़ हज़ारों सूरत-ए-परवानना गिर पड़ेउल्टी नक़ाब रुख़ से जो महफ़िल में यार ने
ऐ सितमगर बेवफ़ा ये बेवफ़ाई कब तलकआशिक़ों की तेरे कूचे में दुहाई कब तलक
गर हक़ीक़ी नहीं बे-लौस मजाज़ी ही सहीरह किए इ’श्क़ से पैदा किसी बाबत रहिए
ग़म-ए-फ़िराक़ गर ऐसा मैं जानता 'बेदार'तो अपने दिल को किसी से न आश्ना करता
ईमान दे के मोल लिया इ'श्क़-ए-फ़ित्ना-गरबाज़ी लगा के जीत का घर देखते रहे
गर किसी ग़ैर को फ़रमाओगे तब जानोगेवे हमीं हैं कि बजा लावें जो इरशाद करो
ईमान दे के मोल लिया इश्क़-ए-फ़ित्ना-गरबाज़ी लगा के जीत का घर देखते रहे
जहाँ गर हो दुश्मन है क्या फ़िक्र-ओ-ग़मअगर ग़म-गुसारी पे ग़म-ख़्वार हो
आब में साया-फ़गन गिर रुख़-ए-दिलबर होताशाख़-ए-हर-मौज से पैदा गुल-ए-अह्मर होता
बे-ख़ुदी गर हो ख़ुद तो आ के मिलेऐ ख़ुदा बे-ख़ुदी अजब शय है
दर पे लगवाता है गर अपने शहीदों की सबीलतो फिर ऐ क़ातिल लगा तू आब-ख़ोरों को हिना
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