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नाले बुलबुल ने गो हज़ार किएएक भी गुल ने पर सुना ही नहीं
बहार आई चमन में गो मुझे क्यागिरफ़्तार-ओ-असीर-ए-दाम हूँ मैं
गो ज़ीस्त से हैं हम आप बेज़ारइतना पे न जान से ख़फ़ा कर
ख़ुदा गो ज़र्रे ज़र्रे से अयाँ हैमगर ज़र्रा यहाँ कुछ भी नहीं है
नहीं गो आज आराईश से मोहलत आपको लेकिनहमारी दास्तान-ए-ग़म कभी सुनने के क़ाबिल है
गो हुए फ़ुर्क़त कभी तो क्या जमाल-ए-यार सेदम-ब-दम उन की मोहब्बत दिल में घर पाती रही
तेरे वा'दों का ए'तिबार किसेगो कि हो ताब-ए-इंतिज़ार किसे
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