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शे'र
अंधेरा क़ब्र का देखा तो फिर याद आ गए गेसूमैं समझा था कि अब मैं तेरे काकुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
चारों-सम्त अंधेरा फैला ऐसे में क्या रस्ता सूझेपर्बत सर पर टूट रहे हैं पाँव में दरिया बहता है
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
जीवन की उलझी राहों में जब घोर अंधेरा आता हैहाथों में लिए रौशन मशअ'ल तो गुरु हमारे मिलते हैं