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जित्थे हू करे रौशनाई छोड़ अंधेरा वैंदा हूमैं क़ुर्बान तिनाँ तोंं 'बाहू' जो हू सहीह करेंदा हू
सुल्तान बाहू
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मुर्शिद मक्का तालिब हाजी का’बा इ’श्क़ बड़ाया हूविच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
सुल्तान बाहू
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ईमान सलामत हर कोई मंगे इ’श्क़ सलामत कोई हूजिस मंज़ल नूँ इ’श्क़ पहुँचावे ईमान ख़बर न कोई हू
सुल्तान बाहू
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पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हूहर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
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ईमान सलामत हर कोई मंगे इश्क़ सलामत कोई हूमाँगण ईमान शरमावण इश्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हू
सुल्तान बाहू
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इ’श्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हूजित वल वेखां इ’श्क़ दिसीवे ख़ाली जा न काई हू
सुल्तान बाहू
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जिन्हाँ इ’श्क़ हक़ीक़ी पाया मूँहों ना अलावत हूज़िकर फ़िकर विच रहण हमेशा दम नूँ क़ैद लागवन हू
सुल्तान बाहू
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इन्दर कलमा कल-कल करदा इ’श्क़ सिखाया कलमा हूचोदाँ तबक़े कलमे अंदर छड किताबाँ अलमाँ हू
सुल्तान बाहू
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आशिक़ इश्क़ माही दे कोलों फिरन हमेशा खीवे हूजींदे जान माही नूँ डित्ती दोहीं जहानीं जीवे हू
सुल्तान बाहू
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आ’शिक़ इ’श्क़ माही दे कोलों फिरन हमेशा खीवे हूजींदे जान माही नूँ डित्ती दोहीं जहानीं जीवे हू
सुल्तान बाहू
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मंगण ईमान शरमावण इ’श्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हूइश्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू
सुल्तान बाहू
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शौक़ दा देवा बाल अंधेरे मताँ लब्भे वस्त खड़ाती हूमरण थीं उगे मर रहे जिन्हाँ हक़ दी रम्ज़ पछाती हू
सुल्तान बाहू
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आशिक़ राज़ माही दे कोलों, होण कदीं न वांदे हूनींद हराम तिन्हाँ ते जेहड़े ज़ाती इस्म कमांदे हू
सुल्तान बाहू
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आ’शिक़ हो ते इ’श्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हूसै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू