परिणाम "असर-ए-दरिंदगी"
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निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
बुत-ए-काफ़िर की बे-मुरव्वतियाँये हमें सब ख़ुदा दिखाता है
सर्फ़-ए-ग़म हम ने नौजवानी कीवाह क्या ख़ूब ज़िंदगानी की
'असर' इन सुलूकों पे क्या लुत्फ़ हैफिर उस बे-मुरव्वत के घर जाइए
गुलों की तरह चाक का ऐ बहारमुहय्या हर इक याँ गरेबान है
तेरे वा'दों का ए'तिबार किसेगो कि हो ताब-ए-इंतिज़ार किसे
कर के दिल को शिकार आँखों मेंघर करे है तो यार आँखों में
क्या करूँ आह मैं 'असर' का इ'लाजइस घड़ी उस का जी ही जाता है
मानूस न था वो बुत कसो सेटुक राम किया ख़ुदा-ख़ुदा कर
न रहा इंतिज़ार भी ऐ यासहम उमीद-ए-विसाल रखते थे
क्या कहे वो कि सब हुवैदा हैशान तेरी तिरी किताब के बीच
नाला करना कि आह करनादिल में 'असर' उस के राह करना
हूँ तीर-ए-बला का मैं निशान:शमशीर-ए-जफ़ा का मैं सिपर हूँ
लेकिन उस को असर ख़ुदा जानेन हुआ होगा या हुआ होगा
कहूँ क्या ख़ुदा जानता है सनममोहब्बत तिरी अपना ईमान है
किधर की ख़ुशी कहाँ की शादीजब दिल से हवस ही सब उड़ा दी
उन बुतों के लिए ख़ुदा न करेदीन-ओ-दिल यूँ कोई भी खोता है
तेरे मुखड़े को यूँ तके है दिलचाँद के जों रहे चकोर लगा
जों गुल तू हँसे है खिल-खिला करशबनम की तरह मुझे रुला कर
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