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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
उस बुलबुल-ए-असीर की हसरत पे दाग़ हूँमर ही गई क़फ़स में सुनी जब सदा-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
असीर-ए-गेसू-ए-पुर-ख़म बनाए पहले आशिक़ कोनिकाले फिर वो पेच-ओ-ख़म कभी कुछ है कभी कुछ है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
हुस्न-ए-असीर-ए-रस्म है 'इश्क़ है इज़्तिराब मेंमुम्किन कहाँ सुकूँ मिले सामना हो हिजाब में
नसर बल्ख़ी
शे'र
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
नौ-असीर-ए-फ़ुर्क़त हूँ वस्ल-ए-यार मुझ से पूछहो गई ख़िज़ाँ दम में सब बहार मुझ से पूछ
निसार अकबराबादी
शे'र
नौ-असीर-ए-फ़ुर्क़त हूँ वस्ल-ए-यार मुझ से पूछहो गई ख़िज़ाँ दम में सब बहार मुझ से पूछ
निसार अकबराबादी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है