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शे'र
हश्र के दिन इम्तिहाँ पेश-ए-ख़ुदा दोनों का हैलुत्फ़ है उनकी जफ़ा मेरी वफ़ा से कम रहे
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
इम्तिहाँ-गाह-ए-वफ़ा में तू भी चल मैं भी चलूँआज ऐ शमशीर-ए-क़ातिल मैं नहीं या तू नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
न पूछो बे-नियाज़ी आह तर्ज़-ए-इम्तिहाँ देखोमिलाई ख़ाक में हँस हँस के मेरी आबरू बरसों
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
तिश्ना-लब छोड़ा मुझे क़ातिल ने वक़्त-ए-इम्तिहाँरूह मेरी आब-ए-ख़ंजर को तरसती रह गई