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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
क्या कहूँ क्या ला-मकाँ में उ’म्र 'मुज़्तर' काट दीबे-ख़ुदी ने जिस जगह रखा वहाँ रहना पड़ा
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक हैख़ुदा जाने हमारे इ’श्क़ की दुनिया कहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
शैदा-ए-रू-ए-गुल न हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-सर्वसय्याद के शिकार हैं इस बोसताँ में हम