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शे'र
जा को कोई पकड़े तो कैसे काम करत है नज़र न आएचुपके चुपके सेंध लगावे दिन होवे या अँधेरी रतियाँ
अब्दुल हादी काविश
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
न पूछो क्यूँ मैं का'बे जा के बुत-ख़ाने चला आयाअकेला घर तो दुनिया को बुरा मालूम होता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ये आ’लम है ‘रियाज़’ एक एक क़तरा को तरसता हूँहरम में अब ख़ुदा जाने भरी बोतल कहाँ रख दी