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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
जब चाहने वाले ख़त्म हुए उस वक़्त उन्हें एहसास हुआअब याद में उन की रोते हैं हँस हँस के रुलाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
दफ़्न हूँ एहसास की सदियों पुरानी क़ब्र मेंज़िंदगी इक ज़ख़्म है और ज़ख़्म भी ताज़ा नहीं
मुज़फ़्फ़र वारसी
शे'र
दफ़्न हूँ एहसास की सदियों पुरानी क़ब्र मेंज़िंदगी इक ज़ख़्म है और ज़ख़्म भी ताज़ा नहीं
मुज़फ़्फ़र वारसी
शे'र
एहसास के मय-ख़ाने में कहाँ अब फिक्र-ओ-नज़र की क़िंदीलेंआलाम की शिद्दत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
साग़र सिद्दीक़ी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है