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शाह नसीर
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और भी उन ने 'बयाँ' ज़ुल्म कुछ अफ़्ज़ूद कियाकिया उस शोख़ से तीं इश्क़ का इज़हार अबस
एहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
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क़ातिल ने पाएमाल किया जब से ख़ून-ए-'इश्क़'सब शग़्ल छोड़ कर वो हुआ है हिना-परस्त
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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अभी क्या है ‘क़मर’ उन की ज़रा नज़रें तो फिरने दोज़मीं ना-मेहरबाँ होगी फ़लक ना-मेहरबाँ होगा
क़मर जलालवी
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किया जो मुझ तरफ़ गुल-रू नज़र आहिस्ता आहिस्तावो पहुँची बुलबुल-ए-दिल कूँ ख़बर आहिस्ता आहिस्ता
तुराब अली दकनी
शे'र
मैं ज़र्रा था मुझे ज़र्रे से आफ़्ताब कियाफिर अब न ज़र्रा बना आफ़्ताब कर के मुझे
क़ाज़ी ख़ालीलुद्दीन हसन
शे'र
शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगीन ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही