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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
ख़ुशी से पाँव फैलाते हैं क्या क्या कुंज-ए-तुर्बत में
अजब लज़्ज़त है तिरे हाथ से क़ातिल शहादत में
कौसर ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ है
कि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आए
जो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
शैदा-ए-रू-ए-गुल न हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-सर्व
सय्याद के शिकार हैं इस बोसताँ में हम
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से ऐ नासेह
न झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना
इब्राहीम आजिज़
शे'र
गिर्या-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ का वक़्त आ पहुँचा क़रीब
ऐ गुलो देखो ये बे-मौक़ा' हँसी अच्छी नहीं