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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
बेदम शाह वारसी
शे'र
कोई मस्त-ए-मय-कद: आ गया मय-ए-बे-ख़ुदी पिला गयान सदा-ए-नग़्मा-ए-दैर उठे न हरम से शोर-ए-अज़ाँ उठा
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
मेरी आँख बंद थी जब तलक वो नज़र में नूर-ए-जमाल थाखुली आँख तो ना ख़बर रही कि वो ख़्वाब था कि ख़्याल था
बहादुर शाह ज़फ़र
शे'र
सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबतये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा