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शे'र
कू-ब-कू फिरता हूँ मैं ख़ाना-ख़राबों की तरहजैसे सौदे का तेरे सर में मेरे घर हो गया
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में जाकर हाथ से रक्खें तुझेओ दिल-ए-बेताब हमने इसलिए पाला नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
पस-ए-मुर्दन इरादा दिल में था जो कू-ए-क़ातिल कालहद में ख़ुश हुआ मैं नाम सुनकर पहली मंज़िल का
ग़ाफ़िल लखनवी
शे'र
देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्कइंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
शाह नसीर
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो