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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ है
कि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना को
चला हूँ बारगाह-ए-इ’श्क़ में ले कर ये नज़्राना
बेदम शाह वारसी
शे'र
सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबत
ये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा
हरी चंद अख़्तर
शे'र
पस-ए-मुर्दन इरादा दिल में था जो कू-ए-क़ातिल का
लहद में ख़ुश हुआ मैं नाम सुनकर पहली मंज़िल का
ग़ाफ़िल लखनवी
शे'र
कू-ब-कू फिरता हूँ मैं ख़ाना-ख़राबों की तरह
जैसे सौदे का तेरे सर में मेरे घर हो गया
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्क
इंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
शाह नसीर
शे'र
गया फ़ुर्क़त का रोना साथ उम्मीद-ओ-तमन्ना के
वो बेताबी है अगली सी न चश्म-ए-ख़ूँ-चकाँ मेरी