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शे'र
सताता है मुझे सय्याद ज़ालिम इस लिए शायदकि रौनक़ उस के गुलशन की मिरे शग़्ल-ए-फ़ुग़ाँ तक है
वली वारसी
शे'र
इन्हें आँसू समझ कर यूँ न मिट्टी में मिला ज़ालिमपयाम-ए-दर्द-ओ-दिल है और आँखों की ज़बानी है