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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
या तू ने नज़र ख़ीरा कर दी ऐ बर्क़-ए-तजल्ली या हम हीदीदार में अपनी आँखों का एहसान उठाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
रहज़न-ए-ईमान तू जल्वा दिखा जाए अगरबुत पुजें मंदिर में मस्जिद में ख़ुदा की याद हो
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
जफ़ा-ओ-जौर क्यूँ मुझ को न रास आएँ मोहब्बत मेंजफ़ा-ओ-जौर के पर्दे में पिन्हाँ मेहरबानी है
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
अमीर मीनाई
शे'र
अमीर मीनाई
शे'र
इम्तिहाँ-गाह-ए-वफ़ा में तू भी चल मैं भी चलूँआज ऐ शमशीर-ए-क़ातिल मैं नहीं या तू नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
कमाल-ए-इ’ल्म-ओ-तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल हैतिरा इदराक मुश्किल था तिरा इदराक मुश्किल है