परिणाम "ज़ेहन-ओ-दिल"
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जान-ओ-दिल से भी गुज़र जाएँगेअगर ऐसा ही ख़फ़ा कीजिएगा
दिल है वही दिल जिस में भरा नूर-ए-ख़ुदा होसर है वही जो का'बा-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा हो
दिल-ओ-ग़म में और सीना-ओ-दाग़ मेंरिफ़ाक़त का याँ अहद-ओ-पैमान है
कुछ तो कर खौफ़-ए-खुदा दिल में ऐ ज़ालिम अपनेदिल-ए-उ’श्शाक़ को इस तरह़ से बर्बाद न कर
दिल दिया जान दी ख़ुदा तू नेतेरा एहसान एक हो तो कहूँ
यही आरज़ू दिल में धरता अछेख़ुदा सूँ मुनाजात करता अछे
दिल चुराया है मिरा किस ने ख़ुदा ही जानेनाम लेता है कोई बे-अदबाना तेरा
पढ़ के तेरा ख़त मिरे दिल की अजब हालत हुईइज़्तिराब-ए-शौक़ ने इक हश्र बरपा कर दिया
ये दिल की तड़प क्या लहद को हिलातीतुम्हें क़ब्र पर पाँव धरना न आया
दिल है बेताब चश्म है बे-ख़्वाबजान-ए-'बेदार' क्या करूँ तुझ बिन
तेरे मुखड़े को यूँ तके है दिलचाँद के जों रहे चकोर लगा
उ’मूमन ख़ाना-ए-दिल में मोहब्बत आ ही जाती हैख़ुदी ख़ुद-ए’तिमादी में बदल जाये तो बंदों को
मुद्दतों से आरज़ू ये दिल में हैएक दिन तू घर हमारे आइए
उन का ख़त आने से तस्कीन हुई थी दिल कोजब ये देखा कि लिखा क्या तो लिखा कुछ भी नहीं
दिल में जिगर में आँखों में रहिए ख़ुशी से आपफिर ये न कहियेगा कोई मिलता मकाँ नहीं
दिल गया रौनक़-ए-हयात गईग़म गया सारी काएनात गई
आईना दिल का उन के मुक़ाबिल नहीं रहाअब ये चराग़ रौनक़-ए-महफ़िल नहीं रहा
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