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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
जगा कर ख़्वाब-ए-आसाइश से 'बेदार' आह हस्ती मेंअ’दम-आसूदगाँ को ला के डाला है तबाही में
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
शाह नसीर
शे'र
ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिलकितने उन्वान मिले हैं मिरे अफ़्साने को
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्तीफ़ना का क्या मज़ा जब तक ख़ुदा मालूम होता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मुश्किल है ता कि हस्ती है जावे ख़ुदी का शिर्कतार-ए-नफ़स नहीं है ये ज़ुन्नार साथ है