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शे'र
सिसकते होंगे लाखों सैंकड़ों बे-दम पड़े होंगेसुन ऐ क़ासिद यही अच्छा निशान-ए-कू-ए-क़ातिल है
शम्स फ़िरंगी महल्ली
शे'र
तुम न जाओ ज़ीनत-ए-गुलशन तुम्हारे दम से हैतुम चले जाओगे तो गुलशन में क्या रह जाएगा
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
दम तोड़ रहा है देख ज़रा आ’शिक़ है तिरा कुश्ता है तिराऐ मोहनी सूरत वाले हसीं महबूब को यूँ बर्बाद न कर