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शे'र
शकील बदायूँनी
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निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
जिस्म का रेशा रेशा मचले दर्द-ए-मोहब्बत फ़ाश करेइ’शक में 'काविश' ख़ामोशी तो सुख़नवरी से मुश्किल है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
कुछ ऐसा दर्द शोर-ए-क़ल्ब-ए-बुलबुल से निकल आयाकि वो ख़ुद रंग बन कर चेहरः-ए-गुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
दर्द-ए-दिल अव्वल तो वो आ’शिक़ का सुनते ही नहींऔर जो सुनते हैं तो सुनते हैं फ़साने की तरह
अमीर मीनाई
शे'र
कौन है किस से करूँ दर्द-ए-दिल अपना इज़हारचाहता हूँ कि सुनो तुम तो कहाँ सुनते हो