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शे'र
वो तजल्ली जिस ने दश्त-ए-आरज़ू चमका दिया
कुछ तो मेरे दिल में है और कुछ कफ़-ए-मूसा में है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हर ज़र्रा उस की मंज़िल सहरा हो या हो गुलशन
क्यूँ बे-निशाँ रहे वो तेरा जो बे-निशाँ है
हैरत शाह वारसी
शे'र
दश्त-नवर्दी के दौरान 'मुज़फ़्फ़र' सर पर धूप रही
जब से कश्ती में बैठे हैं रोज़ घटाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
शे'र
बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायत
हमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
ऐ’श-ओ-इश्रत वस्ल-ओ-राहत सब ख़ुशी में हैं शरीक
बे-कसी में आह कोई पूछने वाला नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
साज़-ओ-सामाँ हैं मेरी ये बे सर-ओ-सामनियाँ
बाग़-ए-जन्नत से भी अच्छा है ये वीराना मिरा
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
वफ़ा की हो किसी को तुझ से क्या उम्मीद ओ ज़ालिम
कि इक आलम है कुश्त: तेरी तर्ज़-ए-बेवफ़ाई का