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शे'र
उस आँख से जिस आँख ने मख़मूर दो-आ’लम किएमेरी तरफ़ भी देखना मौला-अ’ली मुश्किल-कुशा
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
गरचे कैफ़ियत ख़ुशी में उस की होती है दो-चंदपर क़यामत लुत्फ़ रखती है ये झुँझलाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
अभी क्या है ‘क़मर’ उन की ज़रा नज़रें तो फिरने दोज़मीं ना-मेहरबाँ होगी फ़लक ना-मेहरबाँ होगा