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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
बादा-ख़्वार तुम को क्या ख़ुर्शीद-ए-महशर का है ख़ौफ़छा रहा है अब्र-ए-रहमत शामियाने की तरह
अमीर मीनाई
शे'र
शकील बदायूँनी
शे'र
हम तल्ख़ी-ए-क़िस्मत से हैं तिश्ना-लब-ए-बादागर्दिश में है पैमाना पैमाने से क्या कहिए
सीमाब अकबराबादी
शे'र
तेरे नैन-ए-पुर-ख़ुमार कूँ सरमस्त-ए-बादा-नाज़या बे-ख़ुदी का जाम या सहर-ए-बला कहूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
इक निगाह जे आ’शिक़ वेखे, लख हज़ाराँ तारे हूलक्ख निगाह जे आलिम वेखे किसे न कद्धी चाढ़े हू
सुल्तान बाहू
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है