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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
वो बहर-ए-हुस्न शायद बाग़ में आवेगा ऐ 'एहसाँ'कि फ़व्वारा ख़ुशी से आज दो दो गज़ उछलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
चश्म-ए-हक़ीक़त-ए-आश्ना देखे जो हुस्न की किताबदफ़्तर-ए-सद-हदीस-ए-राज़ हर वरक़-ए-मजाज़ हो
बेदम शाह वारसी
शे'र
हुस्न-ए-असीर-ए-रस्म है 'इश्क़ है इज़्तिराब मेंमुम्किन कहाँ सुकूँ मिले सामना हो हिजाब में
नसर बल्ख़ी
शे'र
मेरी आँख बंद थी जब तलक वो नज़र में नूर-ए-जमाल थाखुली आँख तो ना ख़बर रही कि वो ख़्वाब था कि ख़्याल था
बहादुर शाह ज़फ़र
शे'र
'इश्क़ वही तड़प वही हुस्न वही अदा वहीहुस्न की इब्तिदा वही 'इश्क़ की इंतिहा वही