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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहींऐसा मिला है दर्द-ए-दिल जिस की कोई दवा नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
हाल-ए-दिल है कोई ख़्वाब-आवर फ़साना तो नहींनींद अभी से तुम को ऐ यारान-ए-महफ़िल आ गई
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है