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शे'र
तुम्हारे दर पे आया ‘आफ़ताब’ उसकी जो मुश्किल हैकरो जल्दी से आसां, हज़रत-ए-ख़्वाजा मुईनुद्दीं
शाह आलम सानी
शे'र
तुम मिरे रोने पे हंसते हो ख़ुदा हँसता रखेये भी क्या कम है कि रो कर तो हंसा सकता हूँ मैं