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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
कोई मस्त-ए-मय-कद: आ गया मय-ए-बे-ख़ुदी पिला गयान सदा-ए-नग़्मा-ए-दैर उठे न हरम से शोर-ए-अज़ाँ उठा
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से ऐ नासेहन झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना
इब्राहीम आजिज़
शे'र
ये कह कर ख़ाना-ए-तुर्बत से हम मय-कश निकल भागेवो घर क्या ख़ाक पत्थर है जहाँ शीशे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
नहीं देता जो मय अच्छा न दे तेरी ख़ुशी साक़ीप्याले कुछ हमेशा ताक़ पर रखे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
मय-ख़ाना में ख़ुदी को नहीं दख़्ल शैख़-जीबे-ख़ुदी हुआ है जिन ने पिया है वो जाम-ए-ख़ास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
एहसास के मय-ख़ाने में कहाँ अब फिक्र-ओ-नज़र की क़िंदीलेंआलाम की शिद्दत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए