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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
हाल-ए-दिल है कोई ख़्वाब-आवर फ़साना तो नहीं
नींद अभी से तुम को ऐ यारान-ए-महफ़िल आ गई
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
शे'र
दर्द-ए-दिल अव्वल तो वो आ’शिक़ का सुनते ही नहीं
और जो सुनते हैं तो सुनते हैं फ़साने की तरह
अमीर मीनाई
शे'र
किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं
ऐसा मिला है दर्द-ए-दिल जिस की कोई दवा नहीं
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
कौन है किस से करूँ दर्द-ए-दिल अपना इज़हार
चाहता हूँ कि सुनो तुम तो कहाँ सुनते हो
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
कुछ ऐसा दर्द शोर-ए-क़ल्ब-ए-बुलबुल से निकल आया
कि वो ख़ुद रंग बन कर चेहरः-ए-गुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
महकने को गुल-ए-दाग़-ए-मोहब्बत दिल में है अपने
खटकने को है ख़ार-ए-हसरत-ए-दीदार आँखों में
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना को
चला हूँ बारगाह-ए-इ’श्क़ में ले कर ये नज़्राना