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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल हैकिसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है
शम्स फ़िरंगी महल्ली
शे'र
बहार आई है गुलशन में वही फिर रंग-ए-महफ़िल हैकिसी जा ख़ंदा-ए-गुल है कहीं शोर-ए-अ’नादिल है
शम्स फ़िरंगी महल्ली
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
शाह नसीर
शे'र
लूटेगा सब बहार तिरी शहना-ए-ख़िज़ाँबुलबुल पर कर ले तू ज़र-ए-गुल को निसार शाख़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
लूटेगा सब बहार तिरी शहना-ए-ख़िज़ाँबुलबुल पर कर ले तू ज़र-ए-गुल को निसार शाख़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
तुम न जाओ ज़ीनत-ए-गुलशन तुम्हारे दम से हैतुम चले जाओगे तो गुलशन में क्या रह जाएगा
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
कोई रश्क-ए-गुलिस्ताँ है तो कोई ग़ैरत-ए-गुलशनहुए क्या क्या हसीं गुलछर्रः पैदा आब-ओ-गिल से
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
हम गिरफ़्तारों को अब क्या काम है गुलशन से लेकजी निकल जाता है जब सुनते हैं आती है बहार