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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
मिरी सम्त से उसे ऐ सबा ये पयाम-ए-आख़िर-ए-ग़म सुनाअभी देखना हो तो देख जा कि ख़िज़ाँ है अपनी बहार पर
जिगर मुरादाबादी
शे'र
उफ़-रे बाद-ए-जोश-ए-जवानी आँख न उन की उठती थीमस्ताना हर एक अदा थी हर इ’श्वा मस्ताना था
बेदम शाह वारसी
शे'र
इलाही बंध रही है आज गुलशन में हवा किस कीलिए फिरती है ख़ुश्बू दम-ब-दम बाद-ए-सबा किस की
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
कुछ आरज़ू से काम नहीं 'इ’श्क़' को सबामंज़ूर उस को है वही जो हो रज़ा-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
शाह नसीर
शे'र
शाह नसीर
शे'र
शाह नसीर
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है