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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
उफ़-रे बाद-ए-जोश-ए-जवानी आँख न उन की उठती थीमस्ताना हर एक अदा थी हर इ’श्वा मस्ताना था
बेदम शाह वारसी
शे'र
जहान-ए-बे-ख़ुदी में मस्ती-ए-वहदत जो ले जायेफ़रिश्ते लें क़दम मेरे वो हूँ मैं रिंद-ए-मस्तान:
इब्राहीम आजिज़
शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में थाअब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
शे'र
हर आँख की तिल में है ख़ुदाई का तमाशाहर ग़ुन्चा में गुलशन है हर इक ज़र्रा में सहरा
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
शे'र
दुनिया के हर इक ग़म से बेहतर है ग़म-ए-जानाँसौ शम्अ' बुझा कर हम इक शम्अ' जला लेंगे