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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
चलता हूँ राह-ए-इ’श्क़ में आँखों से मिस्ल-ए-अश्कफूटें कहीं ये आबले सरसब्ज़ होवें ख़ार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्कइंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप