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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
कामिल शत्तारी
शे'र
सब से हुए वो सीना-ब-सीना हम से मिलाया ख़ाली हाथई’द के दिन जो सच पूछो तो ईद मनाई लोगों ने
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
ब-रोज़-ए-हश्र हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा होगाफ़रिश्तों के लिखे और शैख़ की बातों से क्या होगा
हरी चंद अख़्तर
शे'र
क़ाबू में दिल-ए-नाकाम रहे राज़ी-ब-रज़ा इंसान रहेहंगाम-ए-मुसीबत घबराना इक तर्ह की ये नादानी है
अहक़र बिहारी
शे'र
रिंद हूँ ब-ख़ुदा मगर ‘बेख़ुद’ हूँ बे-ख़ुदा नहींतुम ही मेरे हो पेशवा या’नी कि ना-ख़ुदा भी तुम
बेख़ुद सुहरावरदी
शे'र
कू-ब-कू फिरता हूँ मैं ख़ाना-ख़राबों की तरहजैसे सौदे का तेरे सर में मेरे घर हो गया
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
अदब से सर झुका कर क़ासिद उस के रू-ब-रू जानानिहायत शौक़ से कहना पयाम आहिस्ता आहिस्ता
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
ब-जुज़ आवाज़ ज़ंजीर-ए-गिराँ कुछ ख़ुश नहीं आतायहाँ तक भर गए हैं कान आवाज़-ए-सलासिल से