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शे'र
जब इ’श्क़ आ’शिक़ बेबाक करे तब पावे अपने मतलब को
तन मन को मार के ख़ाक करे तब पावे अपने मतलब को
कवि दिलदार
शे'र
ग़ैर मुँह तकता रहा मैं अर्ज़-ए-मतलब कर चुका
मुझ से उन से आँखों आँखों में इशारः हो गया