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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना कोचला हूँ बारगाह-ए-इ’श्क़ में ले कर ये नज़्राना
बेदम शाह वारसी
शे'र
सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबतये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा
हरी चंद अख़्तर
शे'र
गया फ़ुर्क़त का रोना साथ उम्मीद-ओ-तमन्ना केवो बेताबी है अगली सी न चश्म-ए-ख़ूँ-चकाँ मेरी
राक़िम देहलवी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है