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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
हुस्न-ए-असीर-ए-रस्म है 'इश्क़ है इज़्तिराब में
मुम्किन कहाँ सुकूँ मिले सामना हो हिजाब में
नसर बल्ख़ी
शे'र
नातिक़ लखनवी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ है
कि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आए
जो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
शैदा-ए-रू-ए-गुल न हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-सर्व
सय्याद के शिकार हैं इस बोसताँ में हम
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से ऐ नासेह
न झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना