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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
हुस्न-ए-असीर-ए-रस्म है 'इश्क़ है इज़्तिराब मेंमुम्किन कहाँ सुकूँ मिले सामना हो हिजाब में
नसर बल्ख़ी
शे'र
गुलज़ार में दुनिया के हूँ जो नख़्ल-ए-भुचम्पाख़्वाहिश न समर की न मियाँ ख़ौफ़ क़हर का
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिलकितने उन्वान मिले हैं मिरे अफ़्साने को
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
नहीं मौक़ूफ़ दुनिया ही में चर्चा ख़ून-ए-नाहक़ कासर-ए-महशर भी क़ातिल को पशेमाँ कर के छोड़ूँगा
अफ़क़र मोहानी
शे'र
बहुत ही ख़ैर गुज़री होते होते रह गई उस सेजिसे में ग़ैर समझा हूँ वो उन का पासबाँ होगा