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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
चलता हूँ राह-ए-इ’श्क़ में आँखों से मिस्ल-ए-अश्कफूटें कहीं ये आबले सरसब्ज़ होवें ख़ार
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
बला के रंज-ओ-ग़म दरपेश हैं राह-ए-मोहब्बत मेंहमारी मंज़िल-ए-दिल तक हमें अल्लाह पहुँचाए
सदिक़ देहलवी
शे'र
देखो कू-ए-यार में मत हज़रत-ए-दिल राह-ए-अश्कइंतिज़ार-ए-क़ाफ़िलः मंज़िल पे क्यूँ खींचे हैं आप
शाह नसीर
शे'र
मिरे आँसुओं के क़तरे हैं चराग़-ए-राह-ए-मंज़िलउन्हें रौशनी मिली है तपिश-ए-दिल-ओ-जिगर से
जौहर वारसी
शे'र
बहुत ही ख़ैर गुज़री होते होते रह गई उस सेजिसे में ग़ैर समझा हूँ वो उन का पासबाँ होगा
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
नूह का तूफ़ाँ तो कुछ दिन रह के आख़िर हो गयाऔर मिरी कश्ती अभी तक इश्क़ के दरिया में है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
अर्श गयावी
शे'र
जुज़ तेरे नहीं ग़ैर को रह दिल के नगर मेंजब से कि तिरे इश्क़ का याँ नज़्म-ओ-नसक़ है
मीर मोहम्मद बेदार
शे'र
राह में जन्नत 'हफ़ीज़' आवाज़ देती ही रहीहम ने मुड़ कर भी न देखा कर्बला जाते हुए