परिणाम "रोज़-ओ-शब"
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रोज़-ओ-शब किस तरह बसर मैं करूँग़म तिरा अब तो जी ही खाता है
न पूछ हाल-ए-शब-ए-ग़म न पूछ ऐ 'पुरनम'बहाए जाते हैं आँसू बहाए जाते हैं
रो के फ़रमाते हैं वो शब को जो हम याद आएगोशा-ए-क़ब्र में सोते हैं जगाने वाले
शब-ए-वस्ल क्या मुख़्तसर हो गईज़रा आँख झपकी सहर हो गई
ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त न आई तुझ को शर्मग़ैर के घर जा के मुँह काला किया
शब-ए-फ़ुर्क़त भी जगमगा उट्ठीअश्क-ए-ग़म हैं कि माह-पारे हैं
कुछ आवाज़ें आती हैं सुनसान शब मेंअब उन से भी ख़ाली बयाबाँ हुए हैं
मुश्तरक शब से हुआ ख़ून-ए-जिगर अश्कों मेंरात से रंग बदलने लगे आँसू अपना
वस्ल की शब हो चुकी रुख़्सत क़मर होने लगाआफ़ताब-ए-रोज़-ए-महशर जल्वः-गर होने लगा
अक्सर पलट गई है शब-ए-इंतिज़ार मौतमरने न दर्द-ए-दिल ने दिया ता-सहर मुझे
बला है क़ब्र की शब इस से बढ़ के हश्र के दिनन आऊँ होश में इतनी मुझे पिला देना
शब-ए-ग़म किस आराम से सौ गए हमफ़साना तिरी याद का कहते कहते
ये रो'ब है छाया हुआ शाम-ए-शब-ए-ग़म कादेता नहीं आवाज़ बजाने से गजर भी
क्या इन आहों से शब-ए-ग़म मुख़्तसर हो जाए गीये सह सेहर होने की बातें हैं सेहर हो जाए गी
शब-ए-ग़म देखता हूँ उठ के हर बारवही है या कोई और आसमाँ है
ख़याल-ए-शब-ए-ग़म से घबरा रहे हैंहमें दिन को तारे नज़र आ रहे हैं
वस्ल में गेसू-ए-शब-गूँ ने छुपाई आरिज़लैलतुल-क़द्र में क्यूँ चाँद निकलने न दिया
ऐ शम-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-तार-मोहब्बततुझ से ही है ये गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत
शब-ए-विसाल बयान-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ अबसफ़ुज़ूल है गिला-ए-ज़ख़्म इल्तियाम के बा'द
मिन्नत ओ आ'जिज़ी ओ ज़ारी ओ आहतेरे आगे हज़ार कर देखा
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