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जिगर मुरादाबादी
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साग़र शराब-ए-इ'श्क़ का पी ही लिया जो हो सो होसर अब कटे या घर लुटे फ़िक्र ही क्या जो हो सो हो
अब्दुल हादी काविश
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बाग़-ओ-बहिश्त-ओ-हूर-ओ-जन्नत अबरारों को कीजिए इनायतहमें नहीं कुछ उस की ज़रूरत आप के हम दीवाने हैं
निसार अकबराबादी
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जिगर मुरादाबादी
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ऐ’श-ओ-इश्रत वस्ल-ओ-राहत सब ख़ुशी में हैं शरीकबे-कसी में आह कोई पूछने वाला नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
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साज़-ओ-सामाँ हैं मेरी ये बे सर-ओ-सामनियाँबाग़-ए-जन्नत से भी अच्छा है ये वीराना मिरा