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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
मिरी सम्त से उसे ऐ सबा ये पयाम-ए-आख़िर-ए-ग़म सुनाअभी देखना हो तो देख जा कि ख़िज़ाँ है अपनी बहार पर
जिगर मुरादाबादी
शे'र
क्या कहूँ क्या ला-मकाँ में उ’म्र 'मुज़्तर' काट दीबे-ख़ुदी ने जिस जगह रखा वहाँ रहना पड़ा
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक हैख़ुदा जाने हमारे इ’श्क़ की दुनिया कहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
सिराज औरंगाबादी
शे'र
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है