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सदा ही मेरी क़िस्मत जूँ सदा-ए-हल्क़ा-ए-दर हैअगर मैं घर में जाता हूँ तो वो बाहर निकलता है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
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जफ़ा की बातें सदा बनाना वफ़ा की बातें कभी न करनाख़ुदा के घर में कमी नहीं है किए में अपने कमी न करना
मुज़्तर ख़ैराबादी
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अकबर वारसी मेरठी
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मुर्शिद मक्का तालिब हाजी का’बा इ’श्क़ बड़ाया हूविच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
सुल्तान बाहू
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नहीं यारो ख़ुदा हरगिज़ तुम्हारे सुँ जुदा हैगाजिधर देखे उधर ममलू सदा नूर-ए-ख़ुदा हैगा
तुराब अली दकनी
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नहीं यारो ख़ुदा हरगिज़ तुम्हारे सुँ जुदा हैगाजिधर देखे उधर ममलू सदा नूर-ए-ख़ुदा हैगा
तुराब अली दकनी
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उस बुलबुल-ए-असीर की हसरत पे दाग़ हूँमर ही गई क़फ़स में सुनी जब सदा-ए-गुल
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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उधर हर वार पर क़ातिल को बरसों लुत्फ़ आया हैइधर हर ज़ख़्म ने दी है सदा-ए-आफ़रीं बरसों
मुज़्तर ख़ैराबादी
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किसी का साथ सोना याद आता है तो रोता हूँमिरे अश्कों की शिद्दत से सदा गुल-तकिया गलता है