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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
बादा-ख़्वार तुम को क्या ख़ुर्शीद-ए-महशर का है ख़ौफ़छा रहा है अब्र-ए-रहमत शामियाने की तरह
अमीर मीनाई
शे'र
यहाँ इग़्माज़ तुम कर लो वहाँ देखेंगे महशर मेंछुड़ाना ग़ैर से दामन को और मुझ से गरेबाँ को
राक़िम देहलवी
शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
बे-पिए भी सुब्ह-ए-महशर हम को लग़्ज़िश है बहुतक़ब्र से क्यूँ कर उठें बार-ए-गुनाह क्यूँ कर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
शैदा-ए-रू-ए-गुल न हैं शैदा-ए-क़द्द-ए-सर्वसय्याद के शिकार हैं इस बोसताँ में हम